चांपा. केदारनाथ धाम उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में स्थित केदारनाथ धाम के कपाट 25 अप्रैल 2023 को खुल गये हैं.छह माह अंतराल बाद बाबा केदारनाथ के दर्शन के लिए श्रद्धालू हर साल बड़ी तादात में आते हैं.हसदेव यात्रा समिति चाम्पा इसी संकल्प के साथ क्षेत्र के 120 श्र्द्धालुओं को लेकर 11 मई को राजधानी एक्सप्रेस से ऐसी कोच बिलासपुर से देवभूमि यमनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम के लिए रवाना हुई. इसी तारतम्य से कल 18 मई को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक देवो के देव महादेव के स्वरूप बाबा केदारनाथ जी का दर्शन लाभ अर्जित कर अपने परिवार सहित सम्पूर्ण जगत की कुशल मंगल की कामना करेंगे.इस यात्रा में शामिल सभी श्र्द्धालु प्राकृतिक सौंदर्य भरी वादियों व बर्फीली मौषम के बीच बाबा केदारनाथ नाथ जी के दर्शन के लिए लालायित व रोमांचित हैं.
हसदेव यात्रा समिति की व्यवस्था से श्र्द्धालु हो रहे मुरीद
यमनोत्री-गंगोत्री में यात्रा में शामिल श्र्द्धालुओं ने किये स्नान
कहा जाता है कि चार धाम यात्रा में सर्वाधिक दुर्गम व कठिन यात्रा यमनोत्री व केदारनाथ धाम की होती है लेकिन यात्रा समिति द्वारा की गई व्यवस्था व मार्गदर्शन से उनके राह आसान होते चले गए.भारी बारिश,ठंड और बर्फ़ीली वादियों ने भी भक्तों की जोश कम होने नही दिया यमनोत्री व गंगोत्री में गंगा स्नान व कुंड स्नान कर अपने जीवन को धन्य कर पुण्य प्राप्त किया.
हसदेव यात्रा समिति की व्यवस्था से श्र्द्धालु हो रहे मुरीद
हसदेव यात्रा समिति चाम्पा अपने तीर्थयात्रा में शामिल श्र्द्धालुओं को अपने आराध्य देवी-देवताओं के दर्शन कराने के साथ साथ पर्यटन स्थलों का भ्रमण,मनोरंजन व यात्रियों की सुख-सुविधाओं का विशेष ध्यान रखती है. यात्रा समिति के प्रति लोगों की विस्वास का परिणाम है कि कम समय मे ही कोई भी यात्रा तिथी व स्थल घोषित होने पर परिवार सहित तीर्थयात्रा में शामिल होने लोगों की होड़ लग जाती है.
छः महीने में होते हैं केदारनाथ जी के दर्शन
केदारनाथ धान बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ ही चार धाम और पंच केदार में से भी एक है. मान्यता है कि यहां शीतकाल ऋतु में जब 6 महीने के लिए मंदिर के कपाट बंद होते हैं तो पुजारी मंदिर में एक दीपक जलाते हैं. आश्चर्य की बात ये है कि कड़ाके की ठंड में भी ये ज्योत ज्यो की त्यों रहती है और 6 महीने बाद जब यह मंदिर खोला जाता है तब यह दीपक जलता हुआ मिलता है. हर साल भैरव बाबा की पूजा के बाद ही मंदिर के कपाट बंद और खोले जाते हैं. कहते है कि मंदिर के पट बंद होने पर भगवान भैरव इस मंदिर की रक्षा करते हैं.