भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने रविवार सुबह ‘रियूजेबल लॉन्च व्हीकल ऑटोनॉमस लैंडिंग मिशन’ (आरएलवी लेक्स) का सफलतापूर्वक संचालन किया. परीक्षण 2 अप्रैल की तड़के कर्नाटक के चित्रदुर्ग में वैमानिकी परीक्षण रेंज (एटीआर) में आयोजित किया गया था.
इसरो ने अंतरिक्ष यान की स्वायत्त लैंडिंग सफलतापूर्वक हासिल की
आरएलवी ने भारतीय वायु सेना के एक चिनूक हेलीकॉप्टर द्वारा भारतीय समयानुसार सुबह 7:10 बजे अंडरस्लंग लोड के रूप में उड़ान भरी और 4.5 किमी की ऊंचाई तक उड़ान भरी. आरवी के मिशन मैनेजमेंट कंप्यूटर कमांड के आधार पर एक बार पूर्व निर्धारित पिलबॉक्स पैरामीटर प्राप्त हो जाने के बाद, आरवी को मध्य हवा में 4.6 किमी की डाउन रेंज में छोड़ा गया था. रिलीज की स्थिति में स्थिति, वेग, ऊंचाई और बॉडी रेट आदि को कवर करने वाले 10 पैरामीटर शामिल थे. RLY की रिलीज स्वायत्त थी. RLY ने तब एकीकृत नेविगेशन, मार्गदर्शन और नियंत्रण प्रणाली का उपयोग करके दृष्टिकोण और लैंडिंग युद्धाभ्यास किया और 7:40 AM IST पर पट्टी पर AlK पर एक स्वायत्त लैंडिंग पूरी की. इसके साथ ही इसरो ने अंतरिक्ष यान की स्वायत्त लैंडिंग सफलतापूर्वक हासिल की.
2016 में हुई थी मिशन की शुरुआत
इसरो इस पर काफी लंबे समय से काम कर रहा है कि कम लागत में कैसे अच्छी तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस दिशा में यह वाकई एक बड़ा कदम है. इसरो प्रमुख सोमनाथ ने भी कहा था कि आने वाले दिनों में इसरो अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़ा कामयाबी हासिल करेगा. वह अधिक से अधिक अनुसंधान और उसके डेवलपमेंट पर ध्यान देगा. बता दें कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने अपने पहले RLV-TD HEX-01 मिशन की शुरुआत 2016 में की थी. वहीं, RLV LEX की शुरुआत 2019 में हुई थी.
रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल मेड इन इंडिया
जैसा कि इसके नाम- रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (फिर से इस्तेमाल में आने वाला वाहन) से इसकी खासियत जाहिर है, यह एक ऑर्बिटल री-एंट्री व्हीकल (ORV) (पृथ्वी की कक्षा में फिर से प्रवेश करने वाला वाहन) है. यह पूरी तरह से स्वदेशी है. माना जा रहा है कि इस वाहन यानी यान के सभी परीक्षण सफल रहने पर इसके जरिये सैटेलाइट लॉन्च करने और दुश्मनों के सैटेलाइट को निशाना बनाकर उन्हें नष्ट करने का काम किया जा सकेगा.
RLV LEX की खासियत
इस यान के जरिये डायरेक्टेड एनर्जी वेपन (DEW) (उर्जा किरण से लक्ष्यों को भेदने वाले हथियार) चलाए जा सकेंगे. यह यान अंतरिक्ष से यह काम कर पाएगा यानी के दुश्मनों के लिए यह एक आफत की भूमिका में होगा. इसकी सफलता से युद्ध के तरीके में भी बदलाव आएगा, ऐसी संभावना जताई जा रही है. इसरो ने 2030 तक आरएलवी प्रोजेक्ट को सफल बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है.